सोमवार व्रत कथा || Somvar Vrat Katha
सोमवार व्रत कथा
सोमवार व्रत कथा
किसी नगर में एक धनवान साहूकार रहता था। वह भगवान भोलेनाथ का भक्त था। वह प्रतिदिन भोलेनाथ की पूजा व सोमवार व्रत किया करता था। उनके कोई संतान नहीं थी जिसके कारण वह चिन्ता में रहा करता था लेकिन उसे अपने भोलेनाथ पर पूरा भरोसा था और उसे लगता कि भगवान भोलेनाथ उसकी ये चिन्ता जरूर दूर कर देंगे। इसलिए वो हमेशा भक्तिपूर्ण रूप से भगवान भोलेनाथ व मां पार्वती की पूजा-अर्चना करता रहता था।
एक दिन उसकी इस पूजा-अर्चना से खुश होकर मां पार्वती ने उसे उसकी भक्ति को फल देने के लिए भगवान भोलेनाथ से कहा जिससे उसकी चिन्ता का निवारण हो सके। माता पार्वती ने भगवान शिवजी से उसे पुत्ररत्न का वरदान प्रदान करने की प्रार्थना की। भगवान शिवजी महाराज बोले, “पार्वती यह संसार कर्मक्षेत्र है मनुष्य जैसे बीज बोता है वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है इस साहूकार के भाग्य में संतान सुख नहीं लिखा है। “ परन्तु मां पार्वती से उसका दुःख नहीं देखा गया और उन्होंने भगवान भोलेनाथ को उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देने के लिए मना लिया।
भगवान भोलेनाथ ने कहा कि ठीक है! मैं इसको पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं परन्तु इसके भाग्य में संतान सुख नहीं है उसके पुत्र की आयु जब 12 वर्ष की ही होगी उसकी मृत्यु हो जायेगी इससे अधिक मैं इस साहूकार के लिये कुछ नहीं कर सकता। ऐसा कहकर भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती जी की बात मानकर उसको ये वर दे दिया।
माता पार्वती ने उसे यह बात स्वप्न में आकर बता दी यह सारी बातें साहूकार सुनकर प्रभु इच्छा जानकर उसे इस बात की न तो कोई प्रसन्नता हुई तथा न ही कोई दुःख हुआ। वह पहले की ही भांति भोलेनाथ का व्रत तथा पूजा-पाठ करता रहा। शंकर जी के आशिर्वाद से उसके यहां कुछ दिनों में एक पुत्र का जन्म हुआ उसके जन्म पर भी साहूकार को कोई विशेष खुशी न हुई क्योंकि वह जानता था कि मेरा पुत्र मात्र 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
जब वह पुत्र 11 वर्ष का हो गया तो साहूकार की पत्नी बोली कि हमें अपने पुत्र के विवाह की तैयारी करनी चाहिये। यह सुनकर वह साहूकार बोला कि पहले मैं अपने पुत्र को पढ़ने के लिये काशी (बनारस) भेजूंगा जब इसकी शिक्षा पूर्ण हो जायेगी तभी इसका विवाह करूंगा। ऐसा कहकर साहूकार ने अपने पुत्र को उसके मामा के साथ काशी पढ़ने के लिये भेज दिया और उसे कुछ धन भी दिया जिससे वह रास्ते में गरीब ब्राह्मणों को भोजन करा सके। दोनों मामा-भांजे काशी को चल दिये हो गये वह साहूकार की आज्ञानुसार ब्राह्मणों को भोजन कराते हुये जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक सेठ की पुत्री का विवाह हो रहा था। परन्तु जिस लड़के से उसका विवाह हो रहा था वह एक आंख से दिखाई नहीं देता था लड़के के पिता को डर था कि कहीं कन्या वर को देखकर विवाह के लिये मना न कर दे। जब लड़के के पिता ने मामा-भांजे को देखा तो उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर सेठ की पुत्री से विवाह करा दूं। विवाह बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और वधू को अपने घर से चलूंगा।
वर के पिता ने मामा से बात की वह तैयार हो गया और अपने भांजे का विवाह सेठ की लड़की से करा दिया। परंतु लड़के को यह बात सही नहीं लगी परंतु वह मामा के आगे कुछ नहीं बोल सका। लड़के ने जाते समय सेठ की लड़की की चुनरी पर लिख दिया कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ है किन्तु जिसके साथ तुम्हें विदा करेंगे वह उसको एक आंख से दिखाई नहीं देता है। मैं काशी पढ़ने के लिये जा रहा हूं। जब लड़की को यह ज्ञात हुआ तो विदाई के समय उसने अपने पिता से कहा कि यह मेरा पति नहीं है, मेरा पति तो काशी पढ़ने गया है। ऐसा सुनकर बारात बिना वधु लिये ही लौट गयी।
उधर साहूकार का पुत्र तथा उसके मामा काशी पहुंच गया और गुरूकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु 12 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया। यज्ञ के समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को वह अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेड़ू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा मृत भांजे को देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे।
इधर व्यापारी और उसकी पत्नी सोमवार का व्रत बड़ी श्रद्धा के साथ कर रहे थे उनको अपने भोलेनाथ पर पूर्ण विश्वास था परंतु उन्होंने यह प्रतिज्ञा भी कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। उनकी पूजा अर्चना और सोमवार व्रत कथा के कारण माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से आग्रह कि उनके पुत्र को जीवनदान दे। सोमवार व्रत के फल स्वरूप भगवान भोलेनाथ ने साहूकार के लड़के को जीवन दान दे दिया।
उधर साहूकार का लड़का अपने शिक्षा पूर्ण करके वापस लौट रहा था तो वह उस नगर से वापस होकर लौटा जहां उसकी शादी हुई थी सेठ ने उसको पहचान लिया और बहुत सा धन देकर अपनी पुत्री को उसको साथ भेज दिया। साहूकार का लड़का अपने नगर लौट आया अपने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुन साहूकार प्रसन्न हो गया उसे पूर्ण विश्वास था कि काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का।
साहूकार समेत सभी ने मन्दिर में जाकर शिवजी महाराज तथा माता पार्वती की पूजा-अर्चना की तथा उन्हें धन्यवाद दिया बाद में वह सपरिवार भगवान भोलेनाथ की पूजा और सोमवार व्रत करने लगा।
शिव भक्त होने तथा सोमवार का व्रत व सोमवार व्रत कथा करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं, इसी प्रकार जो भक्त सोमवार का विधिवत व्रत करते हैं और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। सोमवार का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है। माना जाता है कि लगातार सोलह सोमवार व्रत करने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। विशेषकर अविवाहित लड़कियां अपनी इच्छा का वर पाने के लिये सोलह सोमवार का व्रत रखती हैं।
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