जय खाटू श्याम || khatu shyam ji
खाटू श्याम बाबा कौन हैं
वनवास के दौरान जब पांडव अपनी जान बचाते हुए भटक रहे थे, तब भीम का सामना हिंडिम्बा से हुआ। जंहा भीम का गंधर्व विवाह हिंडिम्बा से हुआ, हिंडिम्बा तथा भीम ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच था।खाटू श्याम बाबा, घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं। खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है। माना जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया। बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखा।
श्याम बाबा को हारे का सहारा क्यों कहा जाता है:
जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने की सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने अपनी माता से इस युद्ध में भाग लेने की आज्ञा मांगी। बर्बरीक ने अपनी माँ का आशीर्वाद लिया और अपनी माता को वचन दिया कि युद्ध में वह हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। इसी वचन के कारण श्याम बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है।
श्याम बाबा को तीन बाणधारी क्यों कहा जाता है:
बर्बरीक ने महीसागर क्षेत्र में नवदुर्गा की आराधना की एवं असीमित शक्तियाँ प्राप्त की , उसके बाद बर्बरीक ने अपने गुरु श्रीकृष्ण की प्रेरणा से भगवान शंकर की तपस्या की बर्बरीक की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें तीन बाण प्रदान किए इसी कारणवश बर्बरीक को तीन बाणधारी भी कहा जाता है। अग्निदेव ने बर्बरीक को दिव्य धनुष भेंट किया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे।
बर्बरीक का नाम श्याम बाबा कैसे पड़ा:
बर्बरीक जब महाभारत के युद्ध के लिए जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें एक ब्राह्मण मिला। यह ब्राह्मण, भगवान श्री कृष्ण थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे। ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर युद्ध के लिए जा रहे है लेकिन मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे जीत सकता है। बर्बरीक ने कहा कि उन्हें भगवान शिव से वरदान प्राप्त है कि उनका वाण नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा इस तरह एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है। अतः तीन तीर के प्रयोग से तो सम्पूर्ण जगत को नष्ट किया जा सकता है। बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे। बर्बरीक बोले कि उन्होंने अब तक कोई पक्ष निर्धारित नहीं किया है, अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे। श्री कृष्ण ये सुनकर चिंतित हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे। युद्ध के पहले दिन ही कौरवों नेे कम सेना के साथ युद्ध करने की योजना बनाई थी। जिससे कौरवों को युद्ध में हारता देख बर्बरीक कौरवों की तरफ से युद्ध करने लगेंगे। कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण (श्री कृष्ण) ने बर्बरीक (खाटू श्याम बाबा) से पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वह एक बाण से पीपल+ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। बर्बरीक ने भगवान शिव का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया। उस एक बाण ने पीपल के सारे पत्तों को भेद दिया और वह बाण वापस आकर ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के आसपास घूमने लगा। क्योंकि श्रीकृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है। बर्बरीक ने उस ब्राह्मण से अपना पैर हटा लेने ही प्रार्थना की और कहा यह वाण आपके पैर को भेद देगा । ब्राह्मण ने पैर हटाने के बदले बर्बरीक से वचन माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया। दान में ब्राह्मण ने बर्बरीक से उनका सिर माँग लिया। यह सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। बर्बरीक ने कहा कि वह वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले आप अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों। भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक ने कहा कि हे भगवन मैं अपना शीश देने के लिए तैयार हूँ लेकिन यह युद्ध मैं अपनी आँखों से देखना चाहता हूं। श्री कृष्ण ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया। बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्रीकृष्ण को दे दिया । श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के सिर को अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध देख सकें। तथा उनकेे धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया। महाभारत के युद्ध में पांडव विजयी हुए। विजय के बाद यह चर्चा होने लगी कि इस विजय का श्रेय किसे दिया जाये। श्री कृष्ण ने कहा बर्बरीक इस सम्पूर्ण युद्ध के साक्षी हैं इसलिए इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए। बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय श्री कृष्ण को जाता है, क्योकि श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही पांडवों की जीत सम्भव हुई।
श्रीकृष्ण बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा हे बर्बरीक मेरे आशीर्वाद से आप आज से मेरे नाम (श्याम के नाम) से जाने जाओगेे। कलियुग में आपकी कृष्णअवतार रूप में पूजा होगी और जैसे जैसे कलियुग अपने चरम पर होगा वैसे वैसे आपकी मान्यता बढ़ती जायेगी और कलियुग में हर घर में आपकी पूजा होगी।
कलियुग में खाटू श्याम बाबा का मंदिर किसने बनवाया
प्रसिद्ध खाटू श्याम जी के मंदिर का निर्माण खाटू गांव के शासक राजा रूपसिंह चैहान और उनकी पत्नी द्वारा सन् 1027 में करवाया गया था।
खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। श्याम बाबा के भव्य मंदिर में दर्शन के लिए हर रोज लाखों भक्त पहुंचते हैं। श्याम बाबा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
एक प्राचीन कथा के अनुसार खाटू गांव के शासक राजा रूपसिंह चैहान को सपना आया, सपने में उनसे खाटू गांव के कुंड में श्याम का सिर होने और उनका मंदिर बनवाने के लिए कहा गया था। तब राजा रूपसिंह चैहान ने खाटू गांव में खाटू श्याम जी के नाम से मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद 1720 में उनके दीवान अभयसिंह ने इसका पुर्ननिर्माण करवाया।
खाटू श्याम मंदिर कहां पर है ?
खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान प्रांत के जयपुर शहर के पास सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित है। खाटू गांव, रींगस रेलवे स्टेशन से लगभग 18 कि0मी0 दूर हैं । ज्यादातर श्याम भक्त रींगस से ही बाबा का निशान उठाकर खाटू गांव तक पैदल चलकर बाबा के दर्शन करते हैं।
खाटू श्याम मंदिर जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन:
खाटू श्याम मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन है। लेकिन लम्बी दूरी की सभी ट्रेनें रींगस रेलवे स्टेशन तक नहीं जाती। इसलिए पहले जयपुर रेलवे स्टेशन पहुचकर वहा से लोकल ट्रेन द्वारा रींगस रेलवे स्टेशन जा सकते है। जयपुर रेलवे स्टेशन से रींगस रेलवे स्टेशन तक के सफर में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है।
श्री खाटू श्याम बाबा के सभी भक्तों से सश्रद्धा विनती है कि इस पोस्ट को सभी श्याम भक्तों में शेयर और फॉरवर्ड जरुर करें, जिससे अन्य लोग भी ये जानकारी पढ़ सकें और श्री खाटू श्याम बाबा की महिमा जान सकें।
श्री खाटू श्याम बाबा अपने भक्तों पर सदैव अपनी कृपा बनाये रखना।
|| जय खाटू श्याम ||
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