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वेदों की ओर

आरती: ॐ जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥        

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥

पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


यह आरती पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा सन् 1870 में लिखी गई थी। जो सनातन धर्म प्रचार, संगीतज्ञ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। यह आरती मुख्य रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है

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